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शुक्रवार, 14 मई 2010

कवि घाघ कहिन

मुझे ज्योतिष सम्बन्धी तनिक भी जानकारी नही है। फिर भी मै ज्योतिषीय किताबें पढ़ना पसन्द करता हूँ। दर असल ज्योतिष को शायद सही सही रूप मे जन-मानस के समक्ष किसी के द्वारा प्रस्तुत नही किया जा सका है। यद्यपि यह एक विग्यान है। खैर! छोडिये  इन बातों को।  यह ब्लागर इन्ही ज्योतिषीय किताबों से चुनकर   कुछ हट के (इस ब्लागर के लिये कुछ हट के , वैसे आप लोगों के लिये नहीं ) लिख्नना चाह रहा है। लीजिये गौर फ़रमाइये; 
कवि घाघ कहिन  
बिन बैलन खेती करे, बिन भैयन के रार. 
बिन मेहरारू घर कराइ, चौदह साख लबार 
कवि घाघ कहते हैं जो व्यक्ति बिना बैलों  की खेती की बात करें, बिना भाइयों की सहायता के लड़ाई झगड़ा करने की बात करे और बिना पत्नी के घर बसाने की बात करे तो निश्चित रूप से वह बहुत बड़ा झूठा है. क्योंकि खेती का कार्य बैलों के बिना या आवश्यक उपकरणों के बिना नहीं किया जा सकता है.  लड़ाई झगड़े के कार्य  में  भाई के सहयोग की बहुत आवश्यकता होती है . अकेला व्यक्ति कभी भी किसी से हार सकता है.  इसी प्रकार घर बसाने के लिए पत्नी की आवश्यकता प्रथम  होती है.  पत्नी ही होती है जो घर को संभालती है और गृहस्थी को सुचारू रूप से चलाती है. 
जय जोहार.................... 
दिनांक १४/०५/२०१० 

8 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बने कहे घाघ के बानी
गोठीया ले बुलाग मा अपन जीवन कहानी

हां करी लाड़ु के काय होइस गा।

मिठलबराई नई चले, दु सैकड़ा बिसाना हे।

जोहार ले

दिलीप ने कहा…

jay johaar...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

जो कोई भी भारत के लोक जीवन का सही अध्ययन करना चाहे तो उसके लिए ग्रामीण जीवन में रची बसी घाघ और भड्डरी की इन कहावतों से बढकर ओर कोई माध्यम नहीं हो सकता......
आपकी पोस्ट पढकर घाघ की एक कहावत हमें भी स्मरण हो आई...
"नीचन से ब्योहार बिसाहा
हँसि के माँगत दम्मा
आलस नीँद निगोडी घेरे
घग्घा तीनि निकम्मा"

अर्थात जो व्यक्ति नीच लोगों के संग लेन देन करता है, जो अपनी दी हुई वस्तु का दाम हँस कर मांगता है और जिसे आलस्य और निगोडी नींद ही घेरे रहती है, घाघ कहता है कि इन तीनों की गिनती निकम्मे लोगों में ही हुआ करती है.

कडुवासच ने कहा…

...अदभुत ...!!!

36solutions ने कहा…

तभे बड़का बिलागर मन मिठ मिठ गोठिया के भाई भाई मन ला पहिली सकेलिंन हे अउ रार होगे.

घाघ बिलागर ये का गा बने बिचार के बतातिस बिलागर मन में से कोनो ला नोबेल पुरस्‍कार मिलईया हे का?

काबर कि जयगंगान भटरी मन घलो बड़े बिहिनिया मांगै दान, लाल बाल हमर फूफा दनान. सरमा सुकुल हमर समधी मान, लड़ई झगरा मा हमर बढ़ही मान. कहि कहिके गावत हें अउ हमन इंखर चक्‍कर मा आके संगें संग रागी मिलावत हन जइसे हमरो कूरां ससुर ये इमन.

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

ललितम शरणम गच्छामि। करी के लडुआ बर मै काल केहे रेहेव के अभनपुर मा शुरु करहू कहिके। फेर इंहां खवाहू तोला। अ उ लबरा माने लबरा काय मिठ अ उ काय सिठ्ठा। जय जोहार।

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

अरे अरे आज टिप्पणी मोर पवित्र होगे। तीन तीन झन महराज मन टिपियाये हें। जम्मो झन ला परनाम्। सन्जीव छत्तीसगढी रिश्ता ला बने लिखे हस। महू ला सुरता आगे; माई लोगन बर: ओखर इन्हा के ले बडे भाई माने कुरा ससुर्। बडे बहिनी माने डेढ सास। ओइसने मनखे बर घरवाली के बडे बहिनी माने तो कामन हे बडे भाई माने डेढ सारा होथे। मै हा गा किताब पढत रेहेव त दिख गे त लिख पारे हन्व।

sonal ने कहा…

अनमोल लिंक ..कब से महाकवि घाघ की रचनाये ढूंढ रही थी
धन्यवाद