पहले हम विचलित हुए,
निकाले अपने मन के गुबार, मित्रों ने भी दिया साथ
पर अब धीरे धीरे समझ रहे हैं, माया नगरी की माया को
रक्त बीज सब बन रहे यहाँ (बेनामी छ्द्म्नामी ब्लोगरों की उत्पत्ति)
क्योंकि यहाँ तो सब अपना हाथ है , जगन्नाथ
प्रतीक्षा है, इस सोपान के समापन का
नव सृजन के आगमन का......
जय जोहार.............
13 टिप्पणियां:
इस पोस्ट की दिल से तारीफ करते हैं।
hamein bhi ...jay johar
मनप्रीत ।
माया नगरी की माया : जितना जल्दी समझ आ जाये, उतना ही अच्छा!
माया हो या मायानगरी महाठगिनी हम जानी।
http://udbhavna.blogspot.com/
sandarbh pata nahi kis andaz me aao kah rahe hain ki apna hath hai jaganntah baki, blog jagat hai mahanath... jo loche me padh gaye vo pade rahenge...
बने कहत हस दाऊ जी
ब्लाग जगत के हाल
बुढवा बैइला दे दे दान
जय गंगान जय गंगान
ये ऊपर त्रिपाठी कौन सा ब्लागर है लगता काफी बूढ़ा है। इसका तो बाल भी झड़ चुका है।
इसके चक्कर में मत आना। आपने एक महान रचना लिखी है। महान रचनाएं महान लोग ही लिख पाते हैं त्रिपाठी साहब।
इस रचना को समझने के लिए आपको देशी पौव्वे की चार शीशी गटकनी होगी, फिर टमाटर खाना होगा. मजाक है क्या बचुआ।
हमें भी
प्रतीक्षा है, इस सोपान के समापन का
नव सृजन के आगमन का!
आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
आचार्य जी
बहुत बढ़िया लगा ।
कोई आचार्य मन की शांति के लिए उपाय धारण करने बोल रहा है तो कोई चार शीशी गटकने की सलाह दे रहा है। ये हो क्या रहा है ब्लागजगत में। बढि़या रचना लिखे हो भाई।
उतम
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